बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 राजनीति विज्ञान बीए सेमेस्टर-3 राजनीति विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 राजनीति विज्ञान
प्रश्न- भारत में भाषा और राजनीति के सम्बन्धों पर प्रकाश डालिये।
अथवा
भाषा के भारतीय राजनीति पर प्रभाव का विश्लेषण कीजिये।
अथवा
भाषावाद की प्रमुख समस्याओं को स्पष्ट कीजिए।
उपरोक्त प्रश्न का उत्तर नीचे दिये गये सम्बन्धित प्रश्नों के उत्तरों के मिलाने से पूरा होता है।
सम्बन्धित लघु प्रश्न
1. भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का क्या प्रभाव हुआ?
अथवा
भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन पर टिप्पणी करें।
अथवा
क्या भाषा के आधार पर छोटे राज्य की माँगें उचित हैं?
उत्तर -
भाषा का प्रश्न राजनीतिक प्रश्न बन गया। भाषा के आधार पर राजनीतिक दलों एवं राजनीतिज्ञों ने जनता को उत्तेजित करने का प्रयास किया। कभी-कभी तो ऐसा लगने लगा कि कहीं भाषा का सवाल हमारी राष्ट्रीय एकता को खण्डित न कर दे। भारत की राजनीति में भाषा से जुड़ी हुई राजनीतिक समस्याएँ इस प्रकार हैं—
(1) हिन्दी के विरोध की राजनीति - राष्ट्रपति द्वारा नियुक्ति आयोग के बंगला तथा तमिलभाषी सदस्यों— डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी और डॉ. पी. सुब्बानारायण ने अपने विमत टिप्पणी ( Minutes of dissent) में समन्वय अथवा मेल-जोल के दृष्टिकोण से अत्यन्त दूर के विचार प्रकट किये। इनका यह दृष्टिकोण था कि अंग्रेजी के स्थान पर हिन्दी को प्रतिस्थापित करने में जल्दी करने का परिणाम " अहिन्दी भाषी जनता पर हिन्दी थोपना" होगा और उससे सार्वजनिक जीवन अस्त-व्यस्त हो जायेगा। इन दोनों का यह दृढ़ मत था कि जब तक सरकारी भाषा अर्थात् हिन्दी पूर्णत: विकसित नहीं हो जाती, अंग्रेजी भाषा प्रयुक्त होती रहे।
(2) भाषायी आधारों पर राज्यों का पुनर्गठन - भाषावार राज्यों के पुनर्गठन की समस्या भारत में जितनी गम्भीर रही है उतनी नवोदित स्वतन्त्र राष्ट्रों में सम्भवतः अन्यत्र कहीं नहीं रही है। स्वाधीनता के कुछ ही समय बाद इस बात के लिए जोरदार राजनीतिक दबाव दिये जाने लगे कि भारत के राज्यों के बीच की सीमाएँ भाषाओं के आधार पर बनायी जायें। सन् 1952 में विशेषत: तेलुगू भाषी लोगों में आन्दोलन बहुत ही तीव्र हो उठा। एक प्रतिष्ठित तेलुगू नेता पोट्टी श्री रामुलु ने उन क्षेत्रों को लेकर जहाँ तेलुगुभाषियों का बहुमत था, एक अलग राज्य बनाने की माँग मनवाने के लिए आमरण अनशन का तरीका अपनाया। अनशन के परिणामस्वरूप उनकी मृत्यु हो गयी और इससे इतने जोर का हंगामा उठ खड़ा हुआ कि नेहरूजी को भाषा के आधार पर राज्य का निर्माण करने के लिए झुकना पड़ा। एक बार तेलुगू भाषाभाषियों की माँग पर सरकार के झुक जाने के बाद देश के विभिन्न भागों में उसी तरह भाषा के आधार पर राज्य बनाने की माँगें बढ़ने लगीं। इन माँगों की जाँच-पड़ताल करने और नये राज्यों की सीमाएँ निर्धारित करने के लिए राज्य पुनर्गठन आयोग नियुक्त किया। राज्य पुनर्गठन आयोग के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन करने के बाद भी मुम्बई के नये राज्य में भाषा के प्रश्न को लेकरं निरन्तर असन्तोष बना रहा, अतः सन् 1960 में इसे दो राज्यों— गुजरात और महाराष्ट्र में बाँटना पड़ा। आगे चलकर 1966 में पंजाब को भाषा के आधार पर ही हरियाणा और पंजाब में विभाजित करना पड़ा। इस तरह के अलगाव के लिए सिक्खों द्वारा बहुत जोरदार आन्दोलन चलाया गया। मास्टर तारासिंह ने कहा कि "यह प्रान्त केवल भाषा पर आधारित होगा और इसे पंजाबी सूबा नाम दिया जा सकेगा।"
(3) भाषायी राज्यों के विवाद - भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन करने में राज्यों में राजनीतिक विवाद उग्र हो गये। ऐसी समस्या चण्डीगढ़ में उत्पन्न हो गयी। इस प्रकार की समस्या महाराष्ट्र और कर्नाटक की सीमा पर बेलगांव व अन्य क्षेत्रों के विवाद के रूप में चली। महाराष्ट्र सरकार बेलगांव नगर पर अपना अधिकार जमाना चाहती थी क्योंकि 1961 की जनगणना के अनुसार यहाँ मराठी भाषी लोगों की संख्या 51.2 प्रतिशत थी। इसके विपरीत, कर्नाटक सरकार का दावा था कि इस नगर में सभी भाषाओं और जातियों के लोग रहते हैं और जो कुछ बहुमत मराठी भाषाओं का था वह भी अब समाप्त हो गया है। बेलगांव चूँकि सम्पूर्ण बेलगांव तालुके का मुख्य केन्द्र है, इसलिए प्रशासनिक दृष्टि से उसे कर्नाटक में ही रहने दिया जाना चाहिए। असम में बंगाली और असमी भाषा के प्रश्न को लेकर सन् 1972 में उग्र विवाद उत्पन्न हो गया। कुछ अन्य प्रान्तों में भी लोग भाषा के आधार पर अलग राज्यों के निर्माण का नारा लगाते रहते हैं। इस प्रकार भाषायी आधार पर राज्यों के टुकड़े करने का एक सुनियोजित अभियान देश में चलाया जा रहा है जो निश्चय ही देश की सुरक्षा और आर्थिक प्रगति के लिए घातक है।
(4) भाषा के आधार पर उत्तर और दक्षिण भारत की संकुचित भावनाएँ - भाषा के आधार पर भारत में उत्तर और दक्षिण भारत की संकुचित मनोवृत्तियाँ पनपने लगीं। दक्षिण भारत ने हिन्दी का जोरदार विरोध किया। दक्षिण भारत में 'हिन्दी साम्राज्य' के विरुद्ध जोरदार आवाजें उठीं। हिन्दी के उत्साही समर्थकों के लिए यह मुश्किल था कि वे चुपचाप बैठे रहें। इस प्रकार भाषा के आधार पर भारत दो टुकड़ों में विभाजित - सा प्रतीत होने लगा—उत्तर और दक्षिण।
(5) भाषा के आधार पर राजनीति में नये दबाव गुटों का उदय - भारतीय राजनीति में भाषागत दबाव गुटों का उदय हुआ। उदाहरणार्थ, भाषा के आधार पर महाराष्ट्रियनों और गुजरातियों ने अपने संगठन संयुक्त महाराष्ट्र समिति और महागुजरात जनता परिषद् बनाये थे, उन्होंने लगभग पूरी तरह से राजनीतिक पार्टियों की जगह ले ली। इन संगठनों में शुरू में वामपन्थी लोग थे, लेकिन जल्दी ही इन्हें गैर-राजनीतिक लोगों का समर्थन प्राप्त हो गया है।
(6) अन्य भाषाओं की मान्यता का प्रश्न - भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में देश की 14 प्रमुख भाषाओं को मान्यता प्रदान की गयी है, जिनका उल्लेख किया जा चुका है। बाद में सिन्धी, कोंकणी, मणिपुरी व नेपाली भाषा को भी मान्यता दे दी गयी, परन्तु समय-समय पर देश में कुछ अन्य क्षेत्रीय भाषाओं की मान्यता की आवाज भी लगायी जाती रही है। उदाहरण के लिए, राजस्थान में राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने की माँग लम्बे समय से की जा रही है। सन् 1961 की गणना के अनुसार राजस्थानी बोलने वालों की संख्या 1 करोड़ 49 लाख थी। इसी तरह ब्रज़, मैथिली, संथाली, छत्तीसगढ़ी आदि भाषाओं की मान्यता का प्रश्न भी जब-तब उठाया जाता रहा है और इन क्षेत्रीय भाषाओं के आधार पर प्रान्तों के निर्माण की बात भी की जाती रही है यद्यपि भारत सरकार ने इन माँगों को अब तक दृढ़तापूर्वक अस्वीकार कर दिया है।
(7) भाषा के मसले पर राजनीतिक हलचल - भाषा के प्रश्न को लेकर राजनीतिक हलचलें बढ़ने लगीं। सी. डी. देशमुख ने जो 1950 में वित्तमन्त्री थे, इसी सवाल को लेकर केन्द्रीय के विरोध में मन्त्री पद दे दिया। इसी प्रकार एम. सी. छागला ने भी सरकार की भाषा नीति के विरोध में मन्त्री पद से त्याग-पत्र दे दिया।
(8) भाषायी अल्पसंख्यकों की समस्या - नये भाषायी राज्यों के निर्माण के उपरान्त भी भाषायी अल्पसंख्यकों की समस्या बनी हुई है, जो शासन से अनेकानेक प्रकार के संरक्षणों की माँग कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश में उर्दू का सवाल, कर्नाटक में मराठी भाषा भाषियों का सवाल, पंजाब में बसे मलयालियों और तमिलों में अब असुरक्षा की भावना पैर जमाने लगी है। कन्नडिगाओं का गुस्सा धीरे-धीरे सुलग रहा है और 1982 के हिंसक आन्दोलन में तो जैसे ज्वालामुखी फट ही पड़ा।
(9) सर्वमान्य शिक्षा नीति के निर्माण में कठिनाइयाँ - भाषा सम्बन्धी समस्याओं का ही परिणाम है कि हम स्वतन्त्रता प्राप्ति के 50 वर्षों के उपरान्त भी किसी ऐसी शिक्षा नीति (Education Policy) का निर्माण नहीं कर सके जिसे हम अपना कह सकें शिक्षा के क्षेत्र में आज भी प्रयोग हो रहे हैं और इससे जीवन के हर क्षेत्र पर दूरगामी प्रभाव पड़ रहा है। सेकेण्ड्री और उच्च शिक्षा के बारे में शिक्षाशास्त्रियों और राजनीतिज्ञों के बीच निरन्तर नोंक-झोंक चलती रही। कई फार्मूले आते और खण्डित होते रहे और जब कभी ऐसा लगता था कि एक पक्ष की जीत हो गयी तो उसे लागू करने की विधि के सम्बन्ध में मतभेद पैदा हो जाता था। सरकार फूंक-फूंककर कदम रखती हुई 'तीन भाषा फार्मूले' तक पहुँची। इसका मतलब यह था कि अहिन्दी भाषी क्षेत्रों में सेकेण्ड्री शिक्षा के किसी स्तर पर क्षेत्रीय भाषा के अलावा कोई अन्य भारतीय भाषा भी पढ़ायी जायेंगी। इस प्रकार दो भाषाएँ आ जायेंगी। तीसरी भाषा अंग्रेजी या अन्य कोई विदेशी भाषा होगी। इस प्रकार सेकेन्ड्री स्तर पूरा होते-होते तीन भाषाएँ आ जायेंगी। इसके अलावा कोई अन्य भारतीय भाषा भी पढ़ायी जायेगी। इस प्रकार दो भाषाएँ हो जायेंगी। शुरू में उत्तर भारत के कुछ भागों में इसका पालन नहीं किया गया—यहाँ तमिल या ऐसी कोई भाषा पढ़ाने के बजाय संस्कृत भाषा को लिया गया, लेकिन जब 1967 से मद्रास में हिन्दी के कट्टर विरोधी द्रविड़ मुनेत्र कड़गम की सरकार बन गयी, तो सबसे पहला काम यह किया कि द्वितीय भाषा के रूप में हिन्दी की पढ़ाई रोक दी। मद्रास विधानसभा के प्रस्ताव में प्रावधान था कि मद्रास राज्य के विद्यार्थियों में केवल अंग्रेजी व तमिल भाषाएँ पढ़ायी जायें तथा हिन्दी को पाठ्यक्रम से बिल्कुल निकाल दिया जाये।
(10) भाषायी आधार पर राजनीतिक आन्दोलन - सरकार की भाषा नीति से हिन्दी के समर्थकों एवं विरोधियों दोनों में ही बड़ा रोष फैला। पहले उत्तर राज्यों— उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र में अंग्रेजी विरोधी प्रदर्शन व उपद्रव हुये और भीड़ ने, जिसमें अधिकतर छात्र होते थे, अराजकता एवं हिसापूर्ण कृत्य किये। दिसम्बर 1967 में मद्रास राज्य में छात्रों ने हिन्दी विरोधी आन्दोलन आरम्भ किये जो शीघ्र ही आन्ध्र और मैसूर तक जा पहुँचे।
(11) स्थानीयता की संकीर्ण भावना का उदय - भाषागत राजनीति के परिणामस्वरूप "धरती के पुत्रों को ही” (The Son of the Soils) अर्थात् केवल उन्हीं लोगों को जो प्रादेशिक भाषा बोलते हैं, सरकारी व गैर-सरकारी पदों पर नियुक्त कर देना चाहिए, धारणा का प्रचलन हुआ। महाराष्ट्र में शिवसेना ने केरल एवं कर्नाटकवासियों को इसलिए तंग किया और उनके साथ मारपीट की थी कि केरलवासियों की भाषा मलयालम तथा कर्नाटक वालों की भाषा कन्नड़ थी।
निष्कर्ष - भाषाविषयक तनावों ने भारत की राष्ट्रीय एकता को बहुत अधिक प्रभावित किया है। आज एक भाषाभाषी व्यक्ति अपने आपको अन्य भाषाभाषियों से भिन्न एक स्वतन्त्र समुदाय मानने लगे हैं तथा अपने लिए एक अलग राज्य अथवा अलग प्रशासनिक इकाई की माँग करने लगे हैं। अनेक अवसरों पर राजनीतिक दलों ने भाषायी समस्या से राजनीतिक लाभ उठाने के प्रयत्न किये हैं और वर्तमान समय में भी इस प्रकार की प्रवृत्ति जारी है। प्रत्येक चुनाव में राजनीतिक दल और उनके नेताओं द्वारा दक्षिण के लोगों को आश्वासन दिया जाता है कि जब तक वे न चाहें, तब तक समस्त भारत में हिन्दी को राजभाषा के रूप में नहीं अपनाया जायेगा। अल्पसंख्यक वर्ग के मत प्राप्त करने के लिए. किन्हीं राज्यों में उर्दू को दूसरी भाषा और किन्हीं राज्यों में तीसरी भाषा के रूप में अपनाने की बात कही जाती है। वर्तमान शासक दल इस प्रकार के आश्वासन देने में किसी अन्य दल से पीछे नहीं है। ये आश्वासन तात्कालिक राजनीतिक लाभ भले ही प्रदान करते हों, इन्होंने भाषा समस्या को सुलझाने के बजाय उसमें जटिलता उत्पन्न करने का ही कार्य किया है। 'हिन्दी को भारतीय संघ की राजभाषा के रूप में अपनाया जाना है' इस पर दो मत नहीं हो सकते और न ही होने चाहिए। आवश्यकता इस बात की है कि विविध राजनीतिक दलों, भाषाओं और क्षेत्रों के प्रतिनिधियों का व्यापक आधार पर एक गोलमेज सम्मेलन बुलाकर शान्त वातावरण में भाषा समस्या पर आवश्यक गम्भीरता के साथ विचार कर इस सम्बन्ध में अन्तिम निर्णय लिया जाये। भारत राष्ट्र की एकता, अखण्डता और शिक्षा व्यवस्था के हितों में भाषा के प्रश्न को दलीय राजनीति से अलग रखना होगा।
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- प्रश्न- सन 1909 ई. अधिनियम पारित होने के कारण बताइये।
- प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, (1909 ई.) के प्रमुख प्रावधानों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, 1909 ई. के मुख्य दोषों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 1935 के भारत सरकार अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, 1935 ई. का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- 'भारत के प्रजातन्त्रीकरण में 1935 ई. के अधिनियम ने एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। क्या आप इस कथन से सहमत हैं?
- प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, 1919 ई. के प्रमुख प्रावधानों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- सन् 1995 ई. के अधिनियम के अन्तर्गत गर्वनरों की स्थिति व अधिकारों का परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- माण्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार (1919 ई.) के प्रमुख गुणों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लोकतंत्र के आयाम से आप क्या समझते हैं? लोकतंत्र के सामाजिक आयामों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- लोकतंत्र के राजनीतिक आयामों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- भारतीय राजनीतिक व्यवस्था को आकार देने वाले कारकों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- भारतीय राजनीतिक व्यवस्था को आकार देने वाले संवैधानिक कारकों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- संघवाद (Federalism) से आप क्या समझते हैं? क्या भारतीय संविधान का स्वरूप संघात्मक है? यदि हाँ तो उसके लक्षण क्या-क्या हैं?
- प्रश्न- भारतीय संविधान संघीय व्यवस्था स्थापित करता है। संक्षेप में बताएँ।
- प्रश्न- संघवाद से आप क्या समझते हैं? संघवाद की पूर्व शर्तें क्या हैं? भारत के सन्दर्भ में संघवाद की उभरती हुई प्रवृत्तियों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- भारत के संघवाद को कठोर ढाँचे में नही ढाला गया है" व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- राज्यों द्वारा स्वयत्तता (Autonomy) की माँग से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- क्या भारत को एक सच्चा संघ (True Federation) कहा जा सकता है?
- प्रश्न- संघीय व्यवस्था में केन्द्र शक्तिशाली है क्यों?
- प्रश्न- क्या भारतीय संघीय व्यवस्था में गठबन्धन की सरकारें अपरिहार्य हैं? चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- क्या क्षेत्रीय राजनीतिक दल भारतीय संघीय व्यवस्था के लिए संकट है? चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- केन्द्रीय सरकार के गठन में क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारत में गठबन्धन सरकार की राजनीति क्या है? गठबन्धन धर्म से क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- भारत के प्रमुख राजनीतिक दलों के विषय में संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
- प्रश्न- राजनीतिक दलों का वर्गीकरण करें। दलीय पद्धति कितने प्रकार की होती है? गुण-दोषों के आधार पर विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दलीय पद्धति के लाभ व हानियाँ क्या हैं?
- प्रश्न- भारतीय दलीय व्यवस्था में पिछले 60 वर्षों में आए परिवर्तनों के कारणों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक उदारवाद के इस युग में भारत में गठबंधन की राजनीति के भविष्य की आलोचनात्मक चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- दलीय प्रणाली (Party System) में क्या दोष पाये जाते हैं?
- प्रश्न- दबाव समूह व राजनीतिक दलों में क्या-क्या अन्तर है?
- प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय दलों के उदय एवं विकास के लिए उत्तरदायी तत्व कौन से हैं?
- प्रश्न- 'गठबन्धन धर्म' से क्या तात्पर्य है? क्या यह नियमों एवं सिद्धान्तों के साथ समझौता है?
- प्रश्न- क्षेत्रीय दलों के अवगुण, टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- सामुदायिक विकास कार्यक्रम क्या है? सामुदायिक विकास कार्यक्रम का क्या उद्देश्य है?
- प्रश्न- 73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- पंचायती राज से आप क्या समझते हैं? ग्रामीण पुननिर्माण में पंचायतों के कार्यों एवं महत्व को बताइये।
- प्रश्न- भारतीय ग्राम पंचायतों के दोषों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- ग्राम पंचायतों का ग्रामीण समाज में क्या महत्व है?
- प्रश्न- क्षेत्र पंचायत के संगठन तथा कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जिला पंचायत का संगठन तथा ग्रामीण समाज में इसकी भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारत में स्थानीय शासन के सम्बन्ध में 'पंचायत राज' के सिद्धान्त व व्यवहार की आलोचना कीजिए।
- प्रश्न- नगरपालिका क्या है? तथा नगरपालिका के कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नगरीय स्वायत्त शासन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- ग्राम सभा के प्रमुख कार्य बताइये।
- प्रश्न- ग्राम पंचायत की आय के प्रमुख साधन बताइये।
- प्रश्न- पंचायती व्यवस्था के चार उद्देश्य बताइये।
- प्रश्न- ग्राम पंचायत के चार अधिकार बताइये।
- प्रश्न- न्याय पंचायत का गठन किस प्रकार किया जाता है?
- प्रश्न- ग्राम पंचायत से आप क्या समझते तथा ग्राम सभा तथा ग्राम पंचायत में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- ग्राम पंचायत की उन्नति के लिए सुझाव दीजिए।
- प्रश्न- ग्रामीण समुदाय पर पंचायत के प्रभाव का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में पंचायत राज संस्थाएँ बताइये।
- प्रश्न- क्षेत्र पंचायत का ग्रामीण समाज में क्या महत्व है?
- प्रश्न- ग्राम पंचायत के महत्व को बढ़ाने के लिए सरकार के द्वारा क्या प्रयास किये गये हैं?
- प्रश्न- नगर निगम के संगठनात्मक संरचना का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नगर निगम के भूमिका एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नगरीय स्वशासन संस्थाओं की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नगरीय निकायों की संरचना पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- नगर पंचायत पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- दबाव व हित समूह में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- दबाव समूह से आप क्या समझते हैं? दबाव समूहों के क्या लक्षण हैं? दबाव समूहों द्वारा अपनाई जाने वाली कार्यप्रणाली के विषय में बतायें।
- प्रश्न- दबाव समूह अपने हित पूरा करने के लिए किस प्रकार कार्य करते हैं?
- प्रश्न- दबाव समूहों के महत्व पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- भारत के प्रमुख राजनीतिक दलों के विषय में संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
- प्रश्न- दबाव समूह किसे कहते हैं? दबाव समूह के कार्यों को लिखिए। भारत की राजनीति में दबाव समूहों की भूमिका की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- मतदान व्यवहार क्या है? मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले तत्वों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दबाव समूह व राजनीतिक दलों में क्या-क्या अन्तर है?
- प्रश्न- दबाव समूहों के दोषों का वर्णन करें।
- प्रश्न- भारत में श्रमिक संघों की विशेषताएँ। टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- भारत में निर्वाचन पद्धति के दोषों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारत में निर्वाचन पद्धति के दोषों को दूर करने के सुझाव दीजिए।
- प्रश्न- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1996 के अंतर्गत चुनाव सुधार के संदर्भ में किये गये प्रावधानों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- क्या निर्वाचन आयोग एक निष्पक्ष एवं स्वतन्त्र संस्था है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- चुनाव सुधारों में बाधाओं पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले तत्व बताइये।
- प्रश्न- चुनाव सुधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- अलगाव से आप क्या समझते हैं? अलगाववाद के कारण क्या हैं?
- प्रश्न- भारतीय राजनीति में धर्म की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता से आप क्या समझते हैं? धर्मनिरपेक्षता के संवैधानिक पक्ष को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सकारात्मक राजनीतिक कार्यवाही से क्या आशय है? इसके लिए भारतीय संविधान में क्या प्रावधान किए गए हैं?
- प्रश्न- जाति को परिभाषित कीजिए। भारतीय राजनीति पर जातिगत प्रभाव का अध्ययन कीजिए। जाति के राजनीतिकरण की विवेचना भी कीजिए।
- प्रश्न- निर्णय प्रक्रिया में राजनीतिक दलों में जाति की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- राज्यों की राजनीति को जाति ने किस प्रकार प्रभावित किया है?
- प्रश्न- क्षेत्रीयतावाद (Regionalism) से क्या अभिप्राय है? इसने भारतीय राजनीति को किस प्रकार प्रभावित किया है? क्षेत्रवाद के उदय के क्या कारण हैं?
- प्रश्न- भारतीय राजनीति पर क्षेत्रवाद के प्रभावों का अध्ययन कीजिए।
- प्रश्न- क्षेत्रवाद के उदय के लिए कौन-से तत्व जिम्मेदार हैं?
- प्रश्न- भारत में भाषा और राजनीति के सम्बन्धों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- उर्दू और हिन्दी भाषा को लेकर भारतीय राज्यों में क्या विवाद है? संक्षेप में चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- भाषा की समस्या हल करने के सुझाव दीजिए।
- प्रश्न- साम्प्रदायिकता से आप क्या समझते हैं? साम्प्रदायिकता के उदय के कारण और इसके दुष्परिणामों की चर्चा करते हुए इसको दूर करने के सुझाव बताइये। भारतीय राजनीति पर साम्प्रदायिकता का क्या प्रभाव पड़ा? समझाइये।
- प्रश्न- साम्प्रदायिकता के उदय के पीछे क्या कारण हैं?
- प्रश्न- साम्प्रदायिकता के दुष्परिणामों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- साम्प्रदायिकता को दूर करने के सुझाव दीजिये।
- प्रश्न- भारतीय राजनीति पर साम्प्रदायिकता के प्रभाव का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- जाति व धर्म की राजनीति भारत में चुनावी राजनीति को कैसे प्रभावित करती है। क्या यह सकारात्मक प्रवृत्ति है या नकारात्मक?
- प्रश्न- "वर्तमान भारतीय राजनीति में धर्म, जाति तथा आरक्षण प्रधान कारक बन गये हैं।" इस पर अपना दृष्टिकोण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'जातिवाद' और सम्प्रदायवाद प्रजातंत्र के दो बड़े शत्रु हैं। टिप्पणी करें।
- प्रश्न- उत्तर प्रदेश के बँटवारे की राजनीति को समझाइए।
- प्रश्न- जन राजनीतिक संस्कृति के विकास के कारण का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 'भारतीय राजनीति में जाति की भूमिका' संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- चुनावी राजनीति में भावनात्मक मुद्दे पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भ्रष्टाचार से क्या अभिप्राय है? भ्रष्टाचार की समस्या के लिए कौन से कारण उत्तरदायी हैं? इस समस्या के समाधान के लिए उपाय बताइए।
- प्रश्न- भ्रष्टाचार के लिए कौन-कौन से कारण उत्तरदायी हैं?
- प्रश्न- भ्रष्टाचार उन्मूलन के कौन-कौन से उपाय हैं?
- प्रश्न- भारत में राजनैतिक, व्यापारिक-औद्योगिक तथा धार्मिक क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भ्रष्टाचार क्या है? भारत के आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, व्यापारिक एवं धार्मिक क्षेत्रों में व्याप्त भ्रष्टाचार का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत के आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, व्यापारिक एवं धार्मिक क्षेत्रों में व्याप्त भ्रष्टाचार का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भ्रष्टाचार के प्रभावों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार की रोकथाम के सुझाव दीजिये।
- प्रश्न- भ्रष्टाचार से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भ्रष्टाचार की विशेषताओं को बताइए।
- प्रश्न- लोक जीवन में भ्रष्टाचार के कारण बताइये।
- प्रश्न- राष्ट्रपति शासन क्या है? यह किन परिस्थितियों में लागू होता है? राष्ट्रपति शासन लगने से क्या परिवर्तन होता है?
- प्रश्न- दल-बदल की समस्या (भारतीय राजनैतिक दलों में)।
- प्रश्न- राष्ट्रपति और प्रधानमन्त्री के सम्बन्धों पर वैधानिक व राजनीतिक दृष्टिकोण क्या है? उनके सम्बन्धों के निर्धारक तत्व कौन-से हैं?
- प्रश्न- दल-बदल कानून (Anti Defection Law) पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- संविधान के क्रियाकलापों पर पुनर्विलोकन हेतु स्थापित राष्ट्रीय आयोग (2002) की दलबदल नियम पद संस्तुति, टिप्पणी कीजिए।